तुम उगते सूरज को देखो

तुम उगते सूरज को देखो,
बादलों के पार एक नया जहान हो जैसे,
जहाँ धूप खिलखिलाती हो हर आंगन में,
घरों में बहती खुशी की बहार हो जैसे।

मनचले रास्तों पर निकल पड़ो,
समय की बहती धारा को पीछे छोड़ चलो,
रुको नहीं इस डर से की रास्ता खत्म हो जाएगा,
ढूँढते चलोगे तो हर रास्ता नई राह से मिल जायेगा ।

पंख है तो उड़ान भरो 
न उड़ पाओ तो थोड़ा और चलो।

तुम उगते सूरज को देखो,
उस पंछी की तलाश में,
जो कचनार की फूलों से रस बटोरती है,
हर बूंद को अपने कंठ में सहेजती है
बादलों के जहान मैं उसका इतना-सा हिस्सा है
सूरज की रोशनी में अपने रंग को बदलने का किस्सा है,
चमकती हुई धूप जब उसके पंखों से टकराती है,
उभर कर नीला रंग दे जाती है।

तुम उगते सूरज को देखो,
जो पर्वत के शिखर से लौट आता है,
एक फूल की तलाश में जिसे जंगल बहुत भाता है,
फागुन के मौसम में जंगल की हरियाली को लाल कर जाता है 
अल्हड़- सा वो फूल पलाश कहलाता है।

तुम उगते सूरज को देखो,
इंतजार करो
देखो!
बादलों की काली चादर अब धुंधली -सी नजर आती है,
चुपके से कुछ तितलियाँ
तुम्हें सहलाती हैं,
अपने रंगों से तुम्हारे अंतर मन को रंग जाती है
भागो नहीं उनके पीछे सत्य की तलाश में,
इंतजार करो और चलते रहो
निरंतर विश्वास से

सही समय पर बादल छट जाते हैं,
हौसलों से आगे नए जहान मिल जाते हैं,
हर फूल का आदर्श है खिलना,
पंछियों और तितलियों से मिलना।

तुम भी उस फूल की तरह को
जिसके खिलने में अभी वक्त है।
तुम अभी उगते सूरज को देखो
और चलते रहो अपनी तलाश में,
खुल जायेंगे नए रास्ते नए विचारों से
बहकते नहीं है फूल हवा की बदलती धाराओं से।

©समीरा मंसूरी 2024

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